ऐसैं मोहिं और कौन पहिंचानै

ऐसैं मोहिं और कौन पहिंचानै।
सुनि री सुंदरि, दीनबंधु बिनु कौन मिताई मानै॥
कहं हौं कृपन कुचील कुदरसन, कहं जदुनाथ गुसाईं।
भैंट्यौ हृदय लगाइ प्रेम सों उठि अग्रज की नाईं॥
निज आसन बैठारि परम रुचि, निजकर चरन पखारे।
पूंछि कुसल स्यामघन सुंदर सब संकोच निबारे॥
लीन्हें छोरि चीर तें चाउर कर गहि मुख में मेले।
पूरब कथा सुनाइ सूर प्रभु गुरु-गृह बसे अकेले॥


 - सूरदास

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