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Showing posts from June, 2018

प्रीति करि काहु सुख न लह्यो

प्रीति करि काहु सुख न लह्यो। प्रीति पतंग करी दीपक सों, आपै प्रान दह्यो॥ अलिसुत प्रीति करी जलसुत सों, संपति हाथ गह्यो। सारँग प्रीति करी जो नाद सों, सन्मुख बान सह्यो॥ हम जो प्रीति करि माधव सों, चलत न कछु कह्यो। 'सूरदास' प्रभु बिनु दु:ख दूनो, नैननि नीर बह्यो॥ - सूरदास

अबिगत गति कछु कहति न आवै

अबिगत गति कछु कहति न आवै। ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥ परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै। मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै॥ रूप रैख गुन जाति जुगति बिनु निरालंब मन चकृत धावै। सब बिधि अगम बिचारहिं, तातों सूर सगुन लीला पद गावै॥ - सूरदास

सबसे ऊँची प्रेम सगाई

सबसे ऊँची प्रेम सगाई। दुर्योधन की मेवा त्यागी, साग विदुर घर पाई॥ जूठे फल सबरी के खाये बहुबिधि प्रेम लगाई॥ प्रेम के बस नृप सेवा कीनी आप बने हरि नाई॥ राजसुयज्ञ युधिष्ठिर कीनो तामैं जूठ उठाई॥ प्रेम के बस अर्जुन-रथ हाँक्यो भूल गए ठकुराई॥ ऐसी प्रीत बढ़ी बृन्दाबन गोपिन नाच नचाई॥ सूर क्रूर इस लायक़ नाहीं कहँ लगि करौं बड़ाई॥ - सूरदास

मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे

मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे। जैसे उड़ि जहाज की पंछि, फिरि जहाज पर आवै॥ कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै। परम गंग को छाँड़ि पियसो, दुरमति कूप खनावै॥ जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल खावै। 'सूरदास' प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै॥ - सूरदास

पिया बिन

पिया बिन नागिन काली रात । कबहुँ यामिन होत जुन्हैया, डस उलटी ह्वै जात ॥ यंत्र न फुरत मंत्र नहिं लागत, आयु सिरानी जात । 'सूर' श्याम बिन बिकल बिरहिनी, मुर-मुर लहरें खात ॥ - सूरदास

प्रीति करि काहु सुख न लह्यो

प्रीति करि काहु सुख न लह्यो। प्रीति पतंग करी दीपक सों, आपै प्रान दह्यो॥ अलिसुत प्रीति करी जलसुत सों, संपति हाथ गह्यो। सारँग प्रीति करी जो नाद सों, सन्मुख बान सह्यो॥ हम जो प्रीति करि माधव सों, चलत न कछु कह्यो। 'सूरदास' प्रभु बिनु दुख दूनो, नैननि नीर बह्यो॥ - सूरदास

निसिदिन बरसत नैन हमारे।

निसिदिन बरसत नैन हमारे। सदा रहत पावस ऋतु हम पर, जबते स्याम सिधारे।। अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे। कंचुकि-पट सूखत नहिं कबहुँ, उर बिच बहत पनारे॥ आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तारे। 'सूरदास' अब डूबत है ब्रज, काहे न लेत उबारे॥ - सूरदास

सखी, इन नैनन तें घन हारे

सखी, इन नैनन तें घन हारे । बिन ही रितु बरसत निसि बासर, सदा मलिन दोउ तारे ॥ ऊरध स्वाँस समीर तेज अति, सुख अनेक द्रुम डारे । दिसिन्ह सदन करि बसे बचन-खग, दुख पावस के मारे ॥ सुमिरि-सुमिरि गरजत जल छाँड़त, अंसु सलिल के धारे ॥ बूड़त ब्रजहिं 'सूर' को राखै, बिनु गिरिवरधर प्यारे ॥ - सूरदास

है हरि नाम कौ आधार

है हरि नाम कौ आधार। और इहिं कलिकाल नाहिंन रह्यौ बिधि-ब्यौहार॥ नारदादि सुकादि संकर कियौ यहै विचार। सकल स्रुति दधि मथत पायौ इतौई घृत-सार॥ दसहुं दिसि गुन कर्म रोक्यौ मीन कों ज्यों जार। सूर, हरि कौ भजन करतहिं गयौ मिटि भव-भार॥ - सूरदास
*🌕🌙* *चांद भी क्या खूब है,* *न सर पर घूंघट है,* *न चेहरे पे बुरका,* *कभी करवाचौथ का हो गया,* *तो कभी ईद का,* *तो कभी ग्रहण का* *अगर* *ज़मीन पर होता तो* *टूटकर विवादों मे होता,* *अदालत की सुनवाइयों में होता,* *अखबार की सुर्ख़ियों में होता,* *लेकिन* *शुक्र है आसमान में बादलों की गोद में है,* *इसीलिए ज़मीन में कविताओं और ग़ज़लों में महफूज़ है”*
*पारीवारीक तनाव कीतना भी बढ जाय पर गोली मेडीकल स्टोर से ही ले*, *पिस्तूल  से नही!!* (दवा बाजार व्यापारी संघ)
*जो मांगू वो दे दिया कर ए जिंदगी...!!* *तू कभी तो मेरे पापा जैसी बन.*