संदेसो दैवकी सों कहियौ

संदेसो दैवकी सों कहियौ।
`हौं तौ धाय तिहारे सुत की, मया करति नित रहियौ॥
जदपि टेव जानति तुम उनकी, तऊ मोहिं कहि आवे।
प्रातहिं उठत तुम्हारे कान्हहिं माखन-रोटी भावै॥
तेल उबटनों अरु तातो जल देखत हीं भजि जाते।
जोइ-जोइ मांगत सोइ-सोइ देती, क्रम-क्रम करिकैं न्हाते॥
सुर, पथिक सुनि, मोहिं रैनि-दिन बढ्यौ रहत उर सोच।
मेरो अलक लडैतो मोहन ह्वै है करत संकोच॥


 - सूरदास 

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