ना ही मैं  कबीर हूँ ,
  ना ही मै रहीम हूँ...
दीवाना हूँ चाहत का बस,
  महोब्बत से मैं अमीर हूँ...

ना मैं चाहता हूँ हिरा-मोती,
  ना मैं चाहता हूँ राजे-रजवाड़े,
बस वो चाहें सिर्फ मुझे,
  उसकी पाक रूह का मैं मुरीद हूँ...

ना मैं चाहू की उसे रोकू,
  ना मैं चाहू की उसे टोकूँ..
बस वो समझे मुझे,
  इस ख्वाइश का मैं फकीर हूँ...

ना मैं उसे रुलाऊ,
   ना  ही मैं उसे सताउ..
बिना मेरे वो खुश रहे सदैव,
   ऐहसास से इस मैं सजीव हूँ...

ना ही मैं  कबीर हूँ ,
  ना ही मै रहीम हूँ...
दीवाना हूँ चाहत का बस,
   महोब्बत से मैं अमीर हूँ.

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