कल रात को बैठे बैठे शराब पिते हुए विचार किया कि अब शराब पिना बंद कर देना चाहिए...
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लेकिन फिर विचार किया कि..
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नशे में इतना बड़ा निर्णय लेना ठीक नही .
जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहै। यह ब्योपार तिहारो ऊधौ, ऐसोई फिरि जैहै॥ यह जापै लै आये हौ मधुकर, ताके उर न समैहै। दाख छांडि कैं कटुक निबौरी को अपने मुख खैहै॥ मूरी के पातन के केना को मुकताहल दैहै। सूरदास, प्रभु गुनहिं छांड़िकै को निरगुन निरबैहै॥ - सूरदास
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